न्यूज़ डेस्क: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। माना जा रहा है कि यूपी में इस बार मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी और सत्तारूढ़ भाजपा के बीच है। यही कारण है कि अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ लगातार एक दूसरे पर वार-पलटवार कर रहे हैं। कुल मिलाकर देखें तो कई चुनावों की तरह इस बार भाजपा उत्तर प्रदेश में मोदी का चेहरा आगे नहीं कर रही है। हां, पार्टी की ओर से मोदी के कामकाज को जरूर गिनाया जा रहा है। लेकिन 2014 के बाद से शायद यह पहला चुनाव है जब प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा भाजपा आगे नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से भी योगी सरकार द्वारा किए जा रहे कामों की जमकर सराहना की जा रही है। मोदी का चेहरा भाजपा के लिए फायदे का मंत्र साबित हुआ है।
उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से चुनावी माहौल बन रहा है। उससे साफ तौर पर योगी बनाम अखिलेश दिखाई दे रहा है। इससे पहले बंगाल चुनाव की बात करें तो वहां ममता बनाम मोदी की लड़ाई थी। 2017 के चुनाव में भी भाजपा ने मोदी को ही आगे करके लड़ा था और सफलता भी हाथ लगी थी। लेकिन इस बार पार्टी प्रत्यक्ष रूप से योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर विश्वास कर चुनावी मैदान में उतर रही है। पिछले 6-7 सालों को देखें तो यूपी में यह बड़ा बदलाव देखने को मिला है। अगर एक ओर से सवाल उठ रहा है कि ‘यूपी में का बा’ तो दूसरी ओर से जवाब आ रहा है ‘यूपी में बाबा हैं’।
योगी फैक्टर
इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि योगी आदित्यनाथ विकास के साथ-साथ हिंदुत्व के मुद्दे पर भी प्रखरता से बोलते हैं। योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता 2017 के बाद पूरे देश में बढ़ी है। इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ को मोदी का विकल्प भी माना जाने लगा है। यही कारण है कि भाजपा की ओर से लगातार योगी आदित्यनाथ पर भरोसा जताया गया है। योगी आदित्यनाथ भी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि 2022 में अगर फिर से सीएम पद पर वापसी करनी है तो लड़ाई को किसी के भरोसे नहीं बल्कि फेस टू फेस खुद ही लड़ना होगा। यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ लगातार अखिलेश यादव पर आक्रमक हैं। योगी आदित्यनाथ के तेवर भी पुराने जैसे ही दिख रहे हैं। विपक्ष दावा कर रहा है कि योगी जो बोल रहे हैं वह एक मुख्यमंत्री की भाषा कतई नहीं हो सकती। राजनीतिक विश्लेषकों का भी दावा है कि योगी आदित्यनाथ अपने चिर परिचित अंदाज में हिंदू वोटों को गोलबंद करने की कोशिश कर रहे हैं।
अखिलेश बने विपक्ष का चेहरा
दूसरी ओर बात अखिलेश की करें तो चुनाव के पास आते ही वह विपक्ष के मजबूत नेता के तौर पर उभरे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनकी रैलियों में जुटने वाली भीड़ रही। उत्तर प्रदेश में मायावती की भी सक्रियता कम है। इसका फायदा अखिलेश को हुआ। नतीजा यह हुआ कि अखिलेश सीधे-सीधे योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने लगे। अखिलेश योगी के किसी बयान को नजरअंदाज नहीं कर रहे। सपा प्रमुख को इस बात का भी आभास है कि अगर चुनाव अखिलेश बनाम मोदी होता है तो कहीं ना कहीं समाजवादी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।